वम्पा अंकरुर एक स्वतंत्र लेखक हैं जो एक नहीं वरन सभी विषयों में लिख़ने में पारंगत हैं । ‘जर्नल ऑफ फीटल रेडियोलॉजी’ , डॉ .रिजो मैथ्यू चूरकुट्टिल जो कि समरकक्षन के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, के साथ अंकरुर से हुए एक अनौपचारिक और निर्बाधित समन्वय के कुछ अंशों को सहर्ष साझा करतें हैं । गौरतलब है कि ‘समरक्षण’ भारतीय रेडियोलॉजिकल और इमेजिंग एसोसिएशन (आईआरआईए) के अंतर्निहित गर्भावस्था के दौरान और जन्म के ठीक पश्चात शिशु मृत्युदर के परिहार्य कारणों को कम करने में पूर्णतः सक्षम एक कार्यक्रम है ।
वम्पा अंकरुर: सुप्रभात डॉक्टर साहब ! आपके साथ बैठ पाने का एक अवसर प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। जैसा कि हम जानते हैं, कि भारतीय रेडियोलॉजी के संगठनात्मक और शैक्षणिक कार्यों के तहत आप पर बहुत सी जिम्मेदारियां हैं, इस बार आप हमें आपके नवीनतम कार्यभार के बारे में बताएं ।
डॉ .रिजो मैथ्यू : सुप्रभात वम्पा ! ये तो मेरा सौभाग्य है ।
वम्पा अंकरुर: ये बात में अच्छी तरह से समझता हूँ, कि राष्ट्रीय स्तर पर आप समरक्षण कार्यक्रम का समन्वय कर रहे हैं। क्या आप हमें इस कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी दे सकते हैं?
डॉ .रिजो मैथ्यू : समरक्षण आईआरआईए के तहत एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं और शिशुओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिए भारत के प्रत्येक जिले तक पहुंचना है। समरक्षण एक कार्यक्रम है, जिसका उद्द्येश्य दक्ष रेडियोलोजिस्ट के समूह द्वारा भारत में गर्भवती महिलाओं और उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए उपयुक्त देखभाल प्रदान करना है। मदद के उद्देश्य से रेडियोलॉजिस्ट की एक विशिष्ट भूमिका होती है । उन्हें भ्रूण के विकास संबंधि तथ्यों की जानकारी के संदर्भ में विभिन्न माध्यमों से कम से कम 3 वर्षों का प्रशिक्षण प्राप्त होता है, जिसमें अल्ट्रासाउंड (सोनाग्राफी), सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन का उपयोग, डॉपलर यानि रक्तवाहिकाओं में प्रवाह का अध्ययन, भ्रूण का इको याने उसके हृदय एवं संबंधित रक्त प्रहार के अध्ययन का उपयोग और सोनोग्राफी निर्देशित छोटी या बड़ी शल्यकृताएँ शामिल हैं। प्रशिक्षण काफ़ी विस्तृत होता है जिसमें मेडिकल फिजिक्स या कहें चिकित्सकीय भौतिकी यानी शरीर के कार्यप्रणाली का ज्ञान, निहित उपकरण और एनाटॉमी यानि शारीरिक संरचना विज्ञान की समझ शामिल है, इसलिए रेडियोलॉजिस्ट समस्याओं की जल्द पहचान कर सुरक्षित प्रसव के लिए गर्भावस्था की देखरेख में लगी टीम के अन्य सदस्यों के साथ काम कर सकते हैं। हालांकि, किन्हीं कारणों वश रेडियोलॉजिस्ट गर्भावस्था की देखरेख संबंधि ज़रूरी और आपसी बातचीत में शामिल नहीं हो पाते। समरक्षन का उद्देश्य इसी अंतराल को भरना है।
वम्पा अंकरुर: प्रसव ही एक प्राथमिकता क्यों ? और भी तो अन्य गंभीर मुद्दे हैं जहाँ रेडियोलॉजिस्ट अधिक योगदान दे पाने में सक्षम हैं ?
डॉ .रिजो मैथ्यू : मेरे हिसाब से ये नज़रिये पर निर्भर करता है। वास्तविकता तो ये है कि सभी मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, हालांकि एक समय में हमें एक मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं हुआ कि दूसरा मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है ।
जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में बच्चे जन्म लेते हैं। हमने जनसंख्या वृद्धिदर, जनसंख्या घनत्व के प्रभाव और उस पर नियंत्रण की आवश्यकता पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया भी है। एक पहलू, जो कि मुझे महसूस होता है, एक सामान्य बातचीत के दायरे से लगातार वंचित रहा आया है, वो है, गर्भवती महिलाओं और शिशुओं की वो संख्या जो गर्भावस्था के दौरान बच नहीं पाती। यह स्वास्थ्य देखरेख संबंधि समन्वयन, विकास संबंधि समन्वयन और इसके फलस्वरूप होने वाले ‘सतत विकास लक्ष्यों’ जिसे कहा जाता है ‘सस्टेनेबल डेवेलपेमेंट गोल्स’ का एक हिस्सा है, जिसे कभी भी अधिकतम प्राथमिकता का दर्जा नहीं मिला ।
भारत में, प्रतिवर्ष लगभग 3 मिलियन महिलाओं को प्री-एक्लम्पसिया (गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप ) होता हैं और लगभग 3.5 मिलियन महिलाओं को समय से पूर्व ही प्रसव हो जाता है, जिसे हम चिकित्सकीय भाषा में ‘प्रीटर्म बर्थ’ कहते हैं। लगभग 26% बच्चों की पैदाइश अपेक्षा से कम वज़न के साथ होती है और लगभग 40% बच्चे गर्भावस्था के दौरान ही अपेक्षा से अल्प वृद्धि दर्शाते हैं या कहें ‘ग्रोथ रेस्ट्रिक्टेड’ होते हैं । भारत में प्रसवकालीन मृत्यु दर बहुत अधिक है, और दुनिया भर में देखा जाए तो इन खराब आंकड़ों के लिए भारत का योगदान भी प्रमुख है, जो कि मेरे मायनों में बतौर एक समाज शर्मसार होने जैसी स्थिति है ।
वम्पा अंकरुर: ये काफ़ी बड़े आंकड़े हैं ।
डॉ .रिजो मैथ्यू : हाँ, सो तो है। इसके महत्व को परिप्रेक्ष्य में तब लिया जा सकता है, जब हम इस बात की गंभीरता को समझें, कि गर्भावस्था के दौरान और उसके तुरंत बाद गर्भवती महिलाओं में बीमारी और मृत्यु और उनके नवजात में बीमारियों के अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणाम किस हद तक होते हैं। इसे मात्र एक आंकड़े के रूप में नहीं देखा जा सकता जो प्रतिवर्ष लिया जाता है, वरन हम इसे प्रतिवर्ष लिए जाने वाले ऐसे आँकड़े के तौर पर देख रहें हैं जिसका सीधा असर समुचित तौर पर हमारे समाज के दीर्घकालीन स्वास्थ्य पर पड़ता है ।
बतौर शुरुआती कड़ी, गर्भवती महिलाएं एक “उत्पादक” आयु वर्ग से संबंध रखतीं हैं, और वहीं इस उम्र में बीमारी और मृत्यु न केवल महिलाओं में बल्कि एक परिवार परिणामस्वरूप समाज में भी उत्पादकता की कमी का सीधा धोतक होती हैं । देखा जाए तो एक महिला परिवार से जुड़ी अधिकांश इकाइयों के लिए आधारस्तंभ है, भले ही हम इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार हो या न हों, इसलिए महिला के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली किसी भी बात का व्यापक असर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिवार पर भी पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान अस्वस्थता माँ और बच्चे दोनों को प्रसव के बाद भी काफ़ी लंबे समय के लिए प्रभावित कर सकते हैं। मेरा विश्वास करें, समाज में कुछ अच्छा हो पाने की संभावना नहीं होती जब एक महिला बीमार होती है, ख़ासकर गर्भावस्था के दौरान ।
वम्पा अंकरुर: क्या इन सब से निपटने के लिए पहले से ही पर्याप्त प्रयास नहीं किये जा रहें हैं?
डॉ .रिजो मैथ्यू : जीहां, बहुत से अद्भुत प्रयास पहले से ही जारी हैं। इन प्रयासों की बदौलत भारत ने मातृ-मृत्यु, बाल- मृत्यु को कम करने और मातृ स्वास्थ्य सुधार की दिशा में बहुत कुछ हासिल किया भी है, जिनके लिए मैं वाक़ई करबद्ध हूँ। जिनकी सराहना की ही जानी चाहिए और हमें इन्हें अधिक बढ़ावा देने की जरूरत भी है।
वम्पा अंकरुर: तो, आपको क्या लगता है रेडियोलॉजी की इसमें क्या भूमिका हो सकती है ? इसलिए सवाल पर वापस आऊंगा, समरक्षण ही क्यों ?
डॉ .रिजो मैथ्यू : हम इसे एक अलग नजरिए से देख रहे हैं। हम नवजात की देखरेख और प्रसव, नवजात और शिशुओं के स्वास्थ्य, विकास के क्षेत्र में किये गए प्रयासों जैसे बेहतर जीवन स्तर, स्वच्छता, पानी, शिक्षा, पोषण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किए गए श्रेष्ठ प्रयासों की सराहना करते हैं। ये किसी पहिये के महत्वपूर्ण खाँचो की तरह हैं।
हम समरक्षण को इन प्रयासों के पूरक रूप में देखते और रखते हैं। समरक्षण की समयावधि के संदर्भ में विशेष प्रकार से ध्यान केंद्रित करने लायक क्या है ? वह समय जब बच्चा मां के गर्भ में हो। ‘गर्भावस्था की समयावधि’ ।
वम्पा अंकरुर: तो हमें इसकी बारीकियों के बारे में बताएं। गर्भावस्था की इस समयावधि में एक रेडियोलॉजिस्ट कैसे मदद कर सकता है ?
डॉ .रिजो मैथ्यू : एक रेडियोलॉजिस्ट कई तरीकों से मदद कर सकता है। शुरुआत से देखें तो रेडियोलॉजिस्ट गर्भावस्था की पुष्टि कर सकते हैं। रेडियोलॉजिस्ट गर्भावस्था की डेटिंग कर सकते हैं, जहां हम भ्रूण की उम्र या कहें गर्भावस्था के समयांतराल का आंकलन की अब तक लगभग कितने हफ़्ते निकल चुके हैं का सही तौर पर अनुमान लगा सकते हैं। गर्भावस्था के समयावधि की सही गणना लगा पाना, की शुरुआत से अब तक कितने हफ़्ते निकल चुके हैं, जितने जल्दी संभव हो उतना सटीक होता है और ये भी जरूरी है कि बाद में ‘डेटिंग’ को बदला न जाये, क्योंकि इसी आधार पर सही मायनों में पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में पल रहे बच्चे की बढ़त उस समयावधि के अनुरूप है या नहीं, कहीं कम या ज्यादा तो नहीं और समयावधि का सही आंकलन जन्म का लगभग सही समय सुनिश्चित करने में भी मदद करता ही है। रेडियोलॉजिस्ट प्रत्येक महिला के अनुरूप और व्यक्तिगत एक ‘रिस्क एस्टीमेट’ दे सकते हैं या कहें एक गणितीय आंकलन के माध्यम से प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही बता पाने में सक्षम होते हैं कि तात्कालिक प्रेग्नेंसी में महिला को प्री-एक्लेमप्सिया (या कहें गर्भवस्था के दौरान होने वाला उच्च रक्तचाप) की संभावना है या नहीं, या फिर गर्भ में पल रहे बच्चे की आयु से लघुतर या कहें ‘ग्रोथ रेस्ट्रिक्टेड’ होने की संभावना है या नहीं है। रेडियोलॉजिस्ट इस व्यक्तिगत अनुमान के आधार पर बचाव के तरीकों की सलाह दे सकते हैं। रेडियोलॉजिस्ट भ्रूण में असामान्यताओं का पता लगा सकते हैं, और असामान्यता की पुष्टि करने के लिए अतिरिक्त परीक्षण कर सकते हैं, और उपचार करने वाले चिकित्सक के साथ सलाह मशवरा कर बच्चे के जन्म की योजना निर्धारित कर सकते हैं । रेडियोलॉजिस्ट पल रहे बच्चे के विकास की मोनिटरिंग या कहें निगरानी कर सकते हैं, भ्रूण को पहुँच रहे रक्त प्रवाह को देख सकते हैं और उसकी आपूर्ति का आंकलन कर उन समस्याओं को जल्द ही पहचान सकने में सक्षम होते हैं जो आगे चलकर बच्चे के मस्तिष्क और विकास को प्रभावित कर सकती हैं। रेडियोलॉजिस्ट प्रसूति विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट को बच्चे के जन्म की योजना और जन्मोपरांत देखरेख के संदर्भ में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
बतौर रेडियोलॉजिस्ट, हमारे पास गर्भावस्था से पहले या बच्चे के जन्म के बाद क्या होता है, इसे बदलने के लिए विशेषज्ञता या कहें दायर नहीं है। वास्तविकता तो ये है कि गर्भधारण से पहले और बाद की अवधि के लिए हमारा दायर सीमित है। हाँ लेकिन ये हमारे सामर्थ में है, कि हम गर्भावस्था के दौरान कुशलतापूर्ण और आत्मविश्वास के साथ, बच्चे के स्वास्थ्य का आंकलन कर इस ज़रूरी जानकारी को चाइल्ड केयर टीम से साझा कर गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद भी बच्चे और माँ दोनों को ही जीवित रहने के लिए सर्वश्रेष्ठ संभावित अवसर दे सकें।
वम्पा अंकरुर: ये तो बहुत कुछ है जिसे किया जा सकता है। समरक्षण के कितने घटक या कहें भाग हैं? समरक्षण इन्हें कैसे श्रेणीबद्ध कर रहा है?
डॉ .रिजो मैथ्यू : समरक्षण कार्यक्रम के कई पहलू हैं। हमारे पास एक श्रेणी ‘प्रशिक्षण’ की है जो कि एक निरंतर चिकित्सा शिक्षा के अंतर्गत है जिसे राज्यों के स्तर पर आयोजित किया जाता है, जहां हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि रेडियोलॉजिस्ट नवीनतम साक्ष्य और संलेखों से से अवगत हों, जिसे हम एक ‘ऑनलाइन लर्निंग पोर्टल’ के साथ भी जोड़ते हैं जो की दिन रात आसानी से उपलब्ध होने के साथ ही मुफ़्त भी होता है। जिले स्तर पर श्रेणी की बात करें तो हमारे पास एक ‘आउटरीच कॉम्पोनेन्ट’ है, जहां हम प्रसूति विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट के साथ एक बातचीत रखते हैं कि हम एक टीम के रूप में, कुशलतापूर्वक कैसे काम कर सकते हैं। समाज के परिपेक्ष्य में हमारे पास एक श्रेणी ‘सोशियल आउटरीच कॉम्पोनेन्ट’ है, जहां हम विभिन्न सामुदायिक हितैषियों और समाज सेवकों के साथ बात करते हैं ताकि गर्भावस्था के दौरान होने वाली सभी संभावनाओं के बारे में जागरूक हुआ जाए। रेडियोलोजिस्ट स्वेच्छा से डेटा प्रस्तुत करते हैं, जिसका मासिक विश्लेषण किया जाता है और जिसे बतौर रिपोर्ट एक बड़े वर्ग के साथ साझा भी किया जाता है। ये हमारे कार्यक्रम के सतत मूल्यांकन का एक हिस्सा होता है ।
वम्पा अंकरुर: हर जिले तक पहुँचने के लिए बहुत सारी गतिविधियाँ और बहुत सारे पैमाने हैं। उस पर काफी खर्च भी होने वाला है। कैसे होगी आवश्यक धनराशि की आपूर्ति ?
डॉ .रिजो मैथ्यू : पूरे मुद्दे को लेकर, हम एक अलग ही पहुंच का इस्तेमाल कर रहे हैं । हमारा कहना है, कि शुरुआत हम अपनी उन क्षमताओं को बढ़ा कर करें जिनका इस्तेमाल हम रोज़मर्रा में करते ही हैं । हम विशालकाय बुनियादी ढांचे में बदलाव, अधिक और महंगे उपकरणों और अधिक कर्मचारी दल इत्यादि को नहीं देख रहे। बल्कि हमारा कहना है, कि क्यों न सबसे पहले सुधार स्वयं के स्तर पे लाये जाएं। जिस तरह से हम इन्हीं चीजों को करते आये हैं, जो हमारे पास पहले से ही उपलब्ध हैं । आइए हम इसे थोड़ा व्यवस्थित करें जिसके साथ ही अपनी अक्षमताओं में कटौती भी।
इसलिए, हमारी प्राथमिकता वर्तमान में उपयोग किए जा रहे संसाधनों के आधार पर ही निरंतर सुधार के लिए खुद को आश्वस्त करना है। ऐसा करने के लिए, हमें अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता नहीं है। हमें एक-दूसरे से अपनी विशेषज्ञता साझा करने की आवश्यकता है इसे चुका न पाने की सीमाओं में बांधे बिना ।
हमें ऐसा क्यों लगता है कि यह महत्वपूर्ण है ? हमें लगता है कि अगर हम खुद को बेहतर बनाने की दिशा में कार्यरत हैं, तो परिणाम स्वरूप हमारे आस पास सब कुछ स्वतः ही सुधरता चला जायेगा, सेवाओं में सुधार होगा, स्वास्थ्य में सुधार होगा, मृत्यदर में स्वतः ही कमी आये इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाता। इसलिए, बजाए इसके की बड़ी समस्याओं से निपटा जाए, हम तत्काल किये जा सकने वाले प्रयास ‘खुद में बदलाव’ को नियंत्रण में ले रहे हैं और इसका इस्तेमाल बड़ी समस्या के समाधान के तौर पर कर रहें हैं। एक समय में एक प्रयास।
इसलिए …..हम शुरुआत कर रहें हैं, अपनी ही क्लीनिक में अपने काम में सुधार करके, हमारे रोगियों के साथ हमारी परस्पर बातचीत के स्तर पर सुधार करके और चाइल्ड केयर टीम में हमारे साथियों के साथ सामंजस्य द्वारा। इसके लिए किसी वित्तीय निवेश की आवश्यकता नहीं है, बस एक मानसिक निवेश चाहिए। हम अपने रोगियों को भी जिम्मेदारी लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, परिवार के साथ-साथ महिला से भी बात करते हुए हम इस बात पर जोर देते हैं कि गर्भावस्था की देखरेख कैसे एक टीम वर्क है जिसमें महिला और साथ में उसका परिवार देखभाल में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वम्पा अंकरुर: क्या वाक़ई में ये काम कर रहा है ? क्या इसके बारे में विस्तृत जानकारी दे सकते हैं ?
डॉ .रिजो मैथ्यू : फिलहाल तो शुरुआत ही है। अभी कार्यक्रम शुरू हुए 9 महीनें ही हुए हैं। हमने 10 राज्यों के 25 जिलों में चरणों में शुरुआत की है। कार्यक्रम में ‘हाई रिस्क’ महिलाओं की पहचान की गई है, लगभग 10% गर्भवती महिलाओं में तात्कालिक प्रेगनेंसी में आगे चलकर प्री एक्लेमप्सिया या कहें उच्च रक्तचाप होने की संभावना पायी गयी है और लगभग 35% गर्भवती महिलाओं में पल रहे बच्चे की बढ़त अपेक्षा से कम या कहें ‘ग्रोथ रेस्ट्रिक्टेड’ होने की संभावना है। हमने बचाव के तरीकों की सलाह दी है और परिणामों को बेहतर बनाने के लिए शिशुजन्म टीमों के साथ लगातार संपर्क में रहते आये हैं। ये शुरुआती दिन हैं तो इतने जल्दी निष्कर्षों पर नहीं पहुचा जा सकता लेकिन हमारे नवीनतम आंकड़ों के अनुसार नवजात मृत्यु दर लगभग 15 प्रति 1000 जीवित जन्म है, जो कि राष्ट्रीय आंकड़ों की तुलना में एक महत्वपूर्ण गिरावट है। हमने अपना ‘बेसलाइन डेटा’ प्रकाशित किया है जिसका मूल उद्देश्य प्रगति की वस्तुस्थिति देखना है। हमारे पास एक निशुल्क ऑनलाइन पुस्तकालय, एक यू-ट्यूब चैनल, राज्य स्तर पर हमारे पास समर्पित व्हाट्सएप समूह हैं जिसमें मामलों या कहें सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा के लिए तत्काल ही एक्सपर्ट्स और मेंटर्स से सीधा संपर्क होता है, एक टेलीग्राम चैनल भी है। हमनें गर्भवती महिलाओं पर केंद्रित एक समर्पित ‘स्वास्थ्य शिक्षा और स्वास्थ्य साक्षरता’ पहल की शुरुआत भी की है जो अंग्रेजी के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में है।
अभी भी काफ़ी कुछ तय करना है। जैसे कि एक कविता कही जाती है- ‘माइल एंड माइल टु गो ……’ लेकिन फिलहाल हम छोटे लेकिन निश्चित तौर पर किये जा सकने वाले प्रयासों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
वम्पा अंकरुर: इन विवरणों को साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मैं प्रगति की समीक्षा करने के लिए फिर से बैठने की उम्मीद करता हूं।
डॉ .रिजो मैथ्यू : जी बिल्कुल और सुनने के लिए आपको भी धन्यवाद !!
The interview was transcribed in Hindi by Dr Akanksha Baghel, Radiologist at Harda, Madhya Pradesh