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ग्रामीण भारत में रेडियोलॉजी प्रैक्टिस के 40 साल: डॉ। ललित के शर्मा के साथ बातचीत

 

डॉ। ललित के शर्मा पिछले 35 से 40 वर्षों से मध्य प्रदेश के एक ग्रामीण क्षेत्र में गर्भावस्था के दौरान शिशुओं पर केंद्रित रेडियोलॉजी का अभ्यास कर रहे हैं।  डॉ। ललित मुफ्त दवा और मुफ्त अल्ट्रासाउंड परीक्षा देने सहित क्षेत्र के गरीब लोगों के लिए समर्पित सेवा प्रदान करते रहे हैं। डॉ। ललित ने सामाजिक कार्यों के साथ अपने काम को संरेखित किया, जिसमें बच्चे की मृत्यु को कम करने की कोशिश करना शामिल है।

 वेम्पा अंकुर, एक स्वतंत्र लेखक, भारत में रेडियोलॉजिस्ट के साथ बातचीत पर एक श्रृंखला लिख ​​रही है, विशेष रूप से आईआरआईए के ‘संरक्षण’ कार्यक्रम से जुड़ी, जिसका उद्देश्य गर्भावस्था के दौरान शिशुओं में होने वाली मौतों को कम करना है।  श्री अंकुर ने डॉ। ललित के शर्मा के साथ अपनी यात्रा को ग्रामीण भारत में रेडियोलॉजिस्ट के रूप में केंद्रित करते हुए बातचीत के कुछ हिस्सों को साझा करते हुए हमें खुशी हो रही है।

 

1 – आपने रेडियोलोजी में स्नातकोत्तर की डिग्री कब पूर्ण की ?

   मैंने रेडियोलोजी में स्नातकोत्तर की डिग्री 1981 में जी आर एम सी ग्वालियर से पूर्ण की|

2 – आप गुना में कब से कार्यरत हैं?

  मैं वर्ष 1982 से गुना में कार्यरत हूँ, बीच में मात्र 2 वर्ष के लिए विदेश गया था|

3 – अपने गुना को ही क्यों चुना? किसी मेट्रो शहर या शहरी क्षेत्र को क्यों नहीं? 

 उन दिनों परिस्थितियां अलग थीं, तब हमारे पास कार्य करने अथवा किसी बड़े शहर में रहने के इतने विविधतापूर्ण विकल्प नहीं थे, जितने आज हम सबके पास हैं| उन दिनों मध्यप्रदेश के बड़े शहरों में भी कार्य करने के अधिक अवसर नहीं थे| मैं मध्यप्रदेश की शासकीय सेवा में पदस्थ हुआ, तत्पश्चात 1986 में नेशनल फ़र्टिलाइज़र लिमिटेड गुना में पब्लिक सेक्टर में कार्य किया| आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस नई दिल्ली से अल्ट्रासोनोग्राफी, सीटी, एमआरआई के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, यहीं पर मुझे सर्वप्रथम सोनोग्राफी का कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ| यहाँ पर ग्वालियर संभाग के किसी शासकीय अथवा अर्धशासकीय संगठन का प्रथम सेट अप था, किन्तु सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात ये थी कि मैं ग्रामीण क्षेत्र से था और ग्रामीण क्षेत्र, जहाँ देश की 70 प्रतिशत जनसँख्या निवास करती है, में ही सेवा प्रदान करना चाहता था| मैं ग्रामीणों द्वारा दैनिक जीवन में किये जाने वाले संघर्ष को समझता था| मुझे उन्हें वापस कुछ देना था|

4 – ग्रामीण क्षेत्र में ‘फीटल रेडियोलोजी’ के बारे में अधिक जानने का प्रयास करते हैं| आप क्या सोचते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के लिए ‘फीटल रेडियोलोजी’ कितनी महत्वपूर्ण है?

  ये अत्यधिक महत्वपूर्ण है| ग्रमीण जनसँख्या, जहाँ स्वास्थ्य सेवाएं गुणवत्तापूर्ण नहीं हैं, विशेष रूप से रेडियोलोजी के क्षेत्र में, हेतु योग्य विशेषज्ञ उपलब्ध होना चाहिए|  ग्रामीण जन, जीवित रहने, विवाहित होने व बच्चे के जन्म की आशा हेतु बहुत संघर्ष करते हैं | उनके संघर्षपूर्ण जीवन में एक बच्चा, कुछ खुशियाँ ला सकता है, उनके जीवन को कुछ हद तक सहन करने योग्य बनाता है| मुझे हमेशा लगता है कि बच्चा जीवन में बहुत संघर्ष करता है, क्या मैं उस बच्चे को जब वह माँ के गर्भ में रहता है, कुछ अच्छा दे सकता हूँ? यहाँ तक कि यदि परिवार बीमार बच्चे की अच्छी देखभाल करना चाहे तो भी ये संभव नहीं है|  ‘फीटल रेडियोलोजी’ बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य को बढावा देने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| ये सभी बच्चों के लिए सच है किन्तु ग्रामीण बच्चों के लिए विशेष रूप से सत्य है| 

5 – आप गर्भ में असामान्यता का पता लगा लेते हैं किन्तु उसके बाद क्या? ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में सबसे महत्वपूर्ण चुनौती सेवा में विलम्ब की होती है| आप किस तरह के विलम्ब का सामना करते हैं? आप इससे कैसे निबटते हैं?

 ये वास्तविकता है कि हम में से अधिकांश जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस करते हैं, नियमित रूप से सेवाओं में विलम्ब की समस्या का सामना करते हैं| हम असामान्यता की पहचान करने के बाद सही उपचार देने में बहुत से  विलम्ब और बाधाओं का सामना करते हैं| सर्वप्रथम मुझे, महिला और उसके परिवारजनों को पाई गयी असामान्यता के बारे में विस्तार से समझाना होता है| कभी कभी ये समझाइस का कार्य कई बार करना पड़ता है और फिर परिवारजन अन्य परिवारजनों को ले आते हैं और उन्हें दोबारा समझाना पड़ता है| अधिकांशतः ये इसलिए नहीं कि उन्हें विश्वास नहीं है या वे बात समझ नहीं पाए, बल्कि इसलिए कि उन्हें असामान्यता की बात के सम्बन्ध में और विस्तृत आश्वासन की जरुरत महसूस होती है| हमें बहुत धैर्य रखकर उन्हें समय देना होता है| कभी कभी मुझे पूरे गाँव को ही, असामान्यता, पूर्व के लक्षण और समुचित इलाज के सम्बन्ध में समझाना पड़ता है| दूसरा विलम्ब होता है वास्तविकता को स्वीकार करने में कठिनाई होने से| प्रत्येक क्षण, जो हम बार बार बातचीत में व्यतीत करते हैं, अमूल्य होता है और ये समय बेकार जाता है महिला के प्रबंधन में| जब इस सम्बन्ध में स्वीकार्यता आती है तो बातचीत होती है कि कहाँ इलाज कराना है, कौन से अस्पताल में महिला को ले जाना है, क्या इलाज का खर्च उठा पाएंगे, क्या शासकीय अस्पताल भरोसेमंद है, शासकीय अस्पताल में इलाज कराने की इच्छा, (एक सामाजिक पहलू भी है कि यदि कोई व्यक्ति शासकीय अस्पताल में इलाज कराता है तो उसे गरीब व्यक्ति माना जायेगा) इस तरह की समस्त बातचीत होती है| ये सब बातें आसानी से ख़त्म नहीं होती बल्कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में कई दिन भी लग जाते हैं | इस समय तक प्रबंधन में विलम्ब हो जाता है, और सुविधाओं की कमी व ख़राब हालत के कारण, मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया जाता है| अच्छी सुविधाओं युक्त निकटतम मेडिकल कॉलेज हमारे शहर से लगभग 225 कि.मी. दूर है| इससे और भी ज्यादा विलम्ब गर्भवती महिला के सुरक्षित परिवहन में हो जाता है| उस महिला के साथ कौन जायेगा, परिवार के कितने सदस्य जायेंगे, उनके काम का क्या होगा, परिचारक के खाने व रुकने की व्यवस्था, ये सभी सवालों के जवाब भी निराकृत करने होते हैं| 

कई बच्चे इस बीच के समय ओर उच्च मेडिकल केयर सुविधा में पहुँचने से पहले ही मर जाते हैं| एक अच्छी स्वास्थ्य देखरेख वास्तव में, डॉक्टर, उनकी कुशलता, संसाधन, परिवार की अच्छा इलाज कराने की इच्छा, उचित समय पर उचित इलाज की उपलब्धता और उच्च स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचने हेतु सुविधा व संसाधन के मध्य, उचित संतुलन है| जब इनमे से कोई भी कड़ी कमजोर होती है, सम्पूर्ण संरचना टूट जाती है| ग्रामीण क्षेत्रों में ख़राब स्वास्थ्य देखरेख इन्ही सब का परिणाम है|

6 – ग्रामीण परिवेश में, कोई भी व्यक्ति ये मान लेता है कि डॉक्टर समुदाय के साथ शामिल और जुड़ा होता है| एक फीटल रेडियोलाजिस्ट समुदाय से कैसे जुड़ता है? विशेष रूप से, आप समुदाय से कैसे जुड़े?

 सभी व्यवसायों की तरह, कुछ लोग समुदाय से जुड़ते हैं और कुछ नहीं| हम सामुदायिक जुडाव को कैसे परिभाषित करते हैं? प्रत्येक व्यक्ति देता है, जो भी वह सोचता है कि वह दे सकता है| कुछ लोग यह अपेक्षा से ज्यादा अनुभव करते हैं और कुछ को लगता है कि ये अपर्याप्त हैं|

मुझे लगता है कि  फीटल रेडियोलाजिस्ट को समुदाय के साथ जुड़ना चाहिए| उस समुदाय या समाज जहाँ से गर्भवती महिलाएं आती हैं, को समझना आवश्यक है| ये महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे संभावित खतरों पर आधारित क्लिनिकल निर्णय को दिशा देने में सहायता मिलती है| ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये आपको संभावित विलम्ब के सम्बन्ध में भी आईडिया देता है| आपको महिलाओं को, उनके नजदीकी सम्बन्धियों को, कभी कभी उनके ससुरालजनों को भी जानना पड़ता है क्योंकि ये सब महिला के इलाज सम्बन्धी निर्णय को प्रभावित करते हैं| अक्सर महिला अपने स्वास्थ्य में सुधार हेतु परिवर्तन लाने हेतु सहमत होती है किन्तु वह नहीं कर पाती क्योंकि उसके माता पिता और ससुरालजन राजी नहीं होते| मुझे लगता है कि इस स्थिति में महिला दोषी नहीं होती, महिला एक इकाई का हिस्सा होती है, अक्सर कमजोर हिस्सा, और यदि हम उसकी सहायता करना चाहते हैं, तो हमें उसके परिवार से भी जुड़ना पड़ता है| चूंकि परिवार समाज का ही हिस्सा होता है इसलिए हमें समाज से भी जुड़ना होता है|

मैं महिला से, उसके परिवार से और यदि जरुरी हुआ तो ससुरालजनों से भी और जितनी बार भी जरुरी हो,  बात करता हूँ | मैं विभिन्न समुदायों में जागरूकता सत्रों का आयोजन करता हूँ, लोगों को सुनता हूँ, बातचीत करता हूँ, और अपने अनुभव व ज्ञान को साझा करता हूँ| कभी-कभी पुराने मरीज, पडोसी, या दूसरे ग्रामीण होते हैं, जो महिला और उसके परिवारजनों को, महिला के उचित इलाज हेतु  समझाने में सफल होते हैं| 

7 – मेडिसिन में मरीज और उसके परिवारजनों से संचार महत्वपूर्ण होता है| हम सामान्यतः रेडियोलोजी के बारे में सोचते हैं कि इसमें रिपोर्ट तैयार कर दूसरे डॉक्टर को इलाज हेतु देना होता है| ग्रामीण क्षेत्र में एक फीटल रेडियोलाजिस्ट के रूप में, क्या आप परिवारजनों से संवाद करते हैं या फिर सिर्फ स्त्री रोग विशेषज्ञ से ही बात करते हैं? परिवारजनों से बात करना कितना महत्वपूर्ण है?

मेरे विचार से मरीज और उसके परिवारजनों से संवाद करना मेरी पहली प्राथमिकता रहती है| हम, रेडियोलाजिस्ट, स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ, बच्चे और माँ के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कार्य करते हैं| मैंने अवलोकन किया है कि क्लिनिशियन अधिक कार्यभार के कारण अपने मरीजों को अधिक समय नहीं दे पाते हैं, अगला मरीज हमेशा दरवाजे पर आने के लिए तैयार होता है| हम महिलाओं से, सभी या अधिकांश संभावनाओ पर बातचीत नहीं कर पाते, और अंत में उनके सबसे ख़राब परिणामों के बारे में बताकर बात ख़त्म करते हैं| मैंने अपनी प्रैक्टिस में, इस बात का ध्यान रखा है कि मरीज को प्रारंभ से ही सब कुछ विस्तार से बताया जाये, कि मैं उनके लिए कौन सी जाँच कर रहा हूँ, मैं ये क्यों कर रहा हूँ, इस जाँच में हम क्या खोज रहे हैं, इस जाँच के परिणामों का क्या मतलब है, और महिला के लिए तात्कालिक व लम्बी अवधि के लिए इस परिणाम का क्या मतलब है? मुझे उन्हें पूरी तरह आश्वस्त करना है और सहज अनुभव कराना होता है ताकि वे अभिभावक की हद तक  मुझमे विश्वास कर सके| सरल शब्दों में कहें तो उन्हें विश्वास होना चाहिए कि मैं हमेशा उनकी बेहतरी के लिए ही सोचूंगा| मैं अपनी रिपोर्ट में अद्यतन शैक्षणिक गाइडलाइन्स के अनुसार ही सब कुछ उल्लेख करता हूँ ताकि ये एक वैध दस्तावेज बन सके और मरीज तथा क्लिनिशियन के मन में विश्वास पैदा कर सके| यदि कोई कोई बात बताना अति आवश्यक लगता है, मैं क्लिनिशियन से फ़ोन पर बात करता हूँ और आवश्यक होने पर फोलो अप भी करता हूँ|

8 – क्या फीटल रेडियोलोजी एक क्लिनिकल विषय है अथवा ये समाज और समुदाय से जुड़ा विषय भी हो सकता है?

 बिलकुल भी नहीं| फीटल रेडियोलोजी केवल एक क्लिनिकल विषय नहीं है, जहाँ सिर्फ एक मशीन के पीछे से रिपोर्ट दी जाती है| मेरे दृष्टिकोण में, यह एक बहुमुखी विषय है जिसे विभिन्न नवीन हितग्राहियों पर विचार कर समाहित करना होता है| माँ और बच्चे के इर्द गिर्द बहुत से हितग्राही हैं जैसे माता पिता, उनके नजदीकी सम्बन्धी जैसे ससुराल जन, अपनी संस्कृति, विश्वास व प्रचलित तरीकों के साथ समाज, चिकित्सक जैसे स्त्री रोग विशेषज्ञ, फीटल रेडियोलाजिस्ट, और शिशु रोग विशेषज्ञ, प्रसव के पश्चात् जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मी जैसे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ए एन एम और अस्पताल के अन्य कर्मी | एक सामाजिक रेडियोलाजिस्ट होने के नाते, मैं उन्हें, बच्चे और गर्भवती महिला की देखभाल हेतु उनकी भूमिका व जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करता हूँ| मैं सभी संभावित अवसरों को, चाहे यह किसी समाज के लोगों का एकत्रण हो, किसी सामाजिक क्लब के कार्यक्रम का आयोजन हो, अथवा किसी भी अन्य कार्यक्रम में जहाँ मुझे अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया हो, उक्त सभी अवसरों पर मैं, लोगों को संवेदनशील बनाता हूँ| सभी गर्भ में पल रहे बच्चे, देश के भावी नागरिक, मेरी पहली प्राथमिकता हैं|

ये तरीका मैंने अप्रैल 2012 से अपनाया है और जब मैंने अपने क्षेत्र में कार्य प्रारंभ किया था तब से शिशु मृत्यु दर को 75 प्रति हजार जीवित जन्म से 25 से 30 प्रति हजार जीवित जन्म तक लाने में  सफल हुआ हूँ, किन्तु मृत जन्म व पेरिनेटल मृत्यु दर कम नहीं कर पाया हूँ| पेरिनेटल मृत्यु दर कम करने के नए तरीकों को सीखने के लिए, मैं यथासंभव सभी मीटिंग व कांफ्रेंस में शामिल होता हूँ| हाल ही में, ‘संरक्षण’ पर इंदौर में हुयी मीटिंग बहुत सहायक रही| इसमें मुझे परिहार्य मृत्यु कम करने के तरीकों के बारे में बेहतर समझ विकसित हुयी| मैंने अपने  प्रैक्टिस के तरीकों के बारे में डॉ रिजो, राष्ट्रीय संयोजक, ‘संरक्षण’, से बातचीत की| मैंने उनके द्वारा दिए दस्तावेजी फॉर्म को भरना शुरू किया, जिसने मुझे जानकारियों को जोड़कर पहले से बेहतर आंकलन करने में मदद की| डॉ रिजो हमेशा उपलब्ध रहते हैं और जब भी मुझे कोई कठिनाई महसूस होती है वे मुझे तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं| ‘संरक्षण’ टीम बहुत सक्रिय है और कुछ भी बेहतर करने योग्य ज्ञात होने पर हमें अवगत कराती है| ‘संरक्षण’ ने मुझे एक सामान्य फीटल रेडियोलाजिस्ट से एक योग्य, कुशल व केन्द्रित फीटल रेडियोलाजिस्ट, किसी महंगे पाठ्यक्रम में शामिल होकर या अतिरिक्त अधोसंरचना में निवेश के बिना, मात्र अपनी कुशलताओं, संसाधन व अधोसंरचना को बेहतर ढंग से उपयोग कर, बनाया| इंदौर में संरक्षण लीर्निंग प्रोग्राम के 6 महीनों के दौरान, मैंने लगभग 480 मरीजों का परीक्षण किया और सच में कह सकता हूँ कि मैं लगभग 30 प्रतिशत पेरीनेटल मृत्यु, केवल प्रारंभ में ही पहचान और समुचित फोलो अप व प्रबंधन कर, रोकने  में सफल रहा हूँ| मैंने अपने प्रत्येक मरीज को एक ‘यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर’ प्रदान किया है ताकि मैं उनके  मेडिकल रिकार्ड्स का पता लगा सकूं और उनसे, अत्यधिक खतरे वाले मरीजों से फ़ोन पर नियमित रूप से संपर्क में रह सकूं, मरीज मेरा मोबाइल नंबर उनके डॉक्टर को उपचार हेतु देकर मुझसे बात करा सकें|

9 – डॉ रिजो का कहना है कि आप ‘संरक्षण’ के कार्यों को दशकों से अपनी प्रैक्टिस में करते आ रहे हैं|  ‘संरक्षण’ कब से आपके साथ है, अपने कैसा महसूस किया, और क्यों? क्या, यदि कुछ है, आपको ‘संरक्षण’ के बारे में उत्साहित करता है?

 हाँ, डॉ रिजो ने बिलकुल ठीक कहा | जैसा मैंने आपसे पहले भी कहा, मैं सामाजिक रेडियोलोजी को लम्बे समय से प्रैक्टिस कर रहा हूँ| 14 नवम्बर 2011, को गुना के तात्कालिक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, श्री संदीप यादव ने रोटरी क्लब गुना को एक आंगनवाड़ी केंद्र के बच्चों के कुपोषण निवारण में सहायता करने की जिम्मेदारी सौंपी| एक डॉक्टर और रोटरी क्लब गुना का ‘प्रेसिडेंट इलेक्ट’ होने के नाते, मैं जिला प्रशासन, महिला एवं बाल विकास विभाग और रोटरी क्लब गुना के मध्य मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर करने वालों में से था| 4 अप्रैल 2012 से मैंने उन 5 आंगनवाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी और उन्हें मार्गदर्शन देना प्रारंभ  किया| वर्तमान में, मैं गुना के 38 आंगनवाड़ी केन्द्रों के ग्रामों तथा शहरी मलिन बस्तियों के क्षेत्र को मिलकर गरीबी रेखा से नीचे की लगभग 60000 जनसँख्या की गर्भवती महिलाओं को निःशुल्क सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ| मेरा तरीका पहली बार आने पर महिला की गर्भावस्था की अवधि का बिलकुल सही आंकलन सुनिश्चित करने पर आधारित है, जो समुचित प्रबंधन निर्णय लेने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है|  साथ ही मैं प्रत्येक महिला को एक ‘यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर’ प्रदान करता हूँ और फिर पूरी गर्भावस्था के दौरान नियमित फोलो अप करता हूँ| उनके परिणामों का डॉक्यूमेंटेशन जैसे नार्मल बर्थ, जन्मजात विकृति, प्रेगनेंसी समाप्ति, बच्चे के विकास की समस्या, आदि और जन्म के पश्चात् जन्म के समय वजन, लिंग, और बच्चे का सामान्य स्वास्थ्य आदि भी किया जाता है| मैं महिलाओं को निः शुल्क दवाइयां और सप्लीमेंट जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व, आयरन फोलिक एसिड, कैल्शियम आदि प्रदान करने के साथ ही व्यक्तिगत व आसपास की स्वच्छता व पोषण के सम्बन्ध में मार्गदर्शन भी प्रदान करता हूँ| मैं प्रत्येक बच्चे को जन्म के बाद 5 वर्ष की उम्र तक फोलो अप करता हूँ जिसमे बच्चे का सामान्य स्वास्थ्य, टीकाकरण, शिशु मृत्यु आदि की मोनिटरिंग शामिल है| यदि किसी बच्चे में जन्मजात ह्रदय सम्बन्धी डिफेक्ट है तो उसे आरबीएसके के  माध्यम से विभिन्न तृतीयक देखरेख संस्थाओं में भेजने की व्यवस्था करवाता हूँ| 

अभी तक लगभग 3300 महिलाओं का परीक्षण और लगभग 15000 सोनोग्राफी (एनामोली स्कैन व फीटल डोपलर स्टडी सहित) निःशुल्क की जा चुकी हैं| ‘यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर’ सिस्टम के कारण प्रत्येक मरीज के उचित फोलो अप व व्यक्तिगत डॉक्यूमेंट संधारण बिना किसी गलती के होने में सहायता मिल रही है| सबसे अच्छी बात ये है कि इससे मुझे कन्या भ्रूण हत्या पूर्णतः रोकने में तथा जन्म के समय के वास्तविक लिंगानुपात और जन्मजात विकृतियों व जन्म के समय कम वजन के आंकड़ों के डॉक्यूमेंटेशन में बहुत सहायता मिली है| गुना जिले में लिंगानुपात 912 है जो हमारे प्रोजेक्ट क्षेत्र में 970 से 1000 के बीच है| वर्ष 2019 में लिंगानुपात 1070 था और जन्म के समय कम वजन के बच्चों का प्रतिशत मात्र 9.6 प्रतिशत था|

अतः मैंने वर्ष 2012-13 में रोटरी क्लब गुना के प्रेसिडेंट होने की अवधि में, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिक सेवा क्षेत्र के रूप में चुना| रोटरी क्लब के सिद्धांत ‘अपने व्यसाय को मानवता की सेवा के दूसरे रूप में  उपयोग करो’ ने मुझे फीटल रेडियोलोजी शिक्षा और क्षमताओं को और भी विस्तृत व बेहतर रूप से अपनाने में मदद की| भारत में, अधिकांश ग्रामीण समुदाय हेतु फीटल रेडियोलोजी की प्रैक्टिस में वैधानिक सीमायें और तुलनात्मक रूप से महंगा कार्य है| गरीब और जरूरतमंद लोगों को निः शुल्क सेवाएं देने के कार्य ने,  मुझे समाज की मदद करने और कन्या भ्रूण हत्या को कम करने के और जनता, राजनैतिक लोगों, विभिन्न शासकीय प्रशासनिक विभागों और स्वास्थ्य कर्मियों की नजरों में विश्वास पैदा करने के मेरे सपने को पूरा करने में में मदद की| 

10 – डॉ रिजो का कहना है कि आप ‘संरक्षण’ टीम के लिए एक बड़ी मदद  हैं| क्या ‘संरक्षण’ ने आपकी मदद की? कैसे?

 डॉ रिजो का धन्यवाद यदि वह ऐसा सोचते हैं| यह ग्रामीण क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले एक रेडियोलाजिस्ट के लिए बहुत बड़ी प्रशंसा है| वास्तव में, डॉ रिजो और ‘संरक्षण’ टीम ने मुझे मेरे कार्य हेतु एक व्यवस्थित संरचना, बेहतरी हेतु सुझाव, कार्यक्रम के सम्बन्ध में नियमित फीडबैक दर्शाता है कि कैसे ‘संरक्षण’ टीम अपने कार्य को निरंतर आंकलन कर बेहतर परिणाम की ओर ले जाती है| मेरे मन में ‘संरक्षण’ के प्रति कृतज्ञता का भाव है| आपको ऐसा नहीं लगता जैसे अपने एक पाठ्यक्रम ओर प्रशिक्षण पूर्ण किया है बल्कि आपको एक परिवार के अंग की तरह होने का अहसास होता है जो हमेशा समाज के लिए निरंतर बेहतर करना चाहता है| चूंकि मैं एक सामाजिक रेडियोलाजिस्ट हूँ, समुदाय के लिए कार्य करना मेरी प्राथमिकता ही नहीं बल्कि मेरे जीवन का  एक मात्र लक्ष्य है| ‘संरक्षण’ प्रोटोकॉल निश्चित रूप से मुझे मेरे क्षेत्र में पेरीनेटल मृत्यु कम करने में मदद करेगा|

11 – आपने स्नातकोत्तर की डिग्री ली है और बहुत सा अनुभव रखते हैं| क्या है जिसने आपको अच्छाई के लिए रेडियोलोजी के व्याहारिक उपयोग में परिवर्तन लाने हेतु प्रेरित किया और क्या है जिसने आपको सबसे ख़राब स्थिति  के लिए परिवर्तन लाने और न लाने के लिए इस अवधि में प्रेरित किया? 

 हाँ, मैं 1978 से जब में स्नातकोत्तर कर रहा था, रेडियोलोजी में प्रैक्टिस कर रहा हूँ और 1987 से फीटल रेडियोलोजी में प्रैक्टिस कर रहा हूँ| प्रैक्टिस से बहुत कुछ परिवर्तन आया है, माहौल और अपेक्षाएं बदली हैं| हमें अच्छाई की ओर ध्यान केन्द्रित करना है|  ‘संरक्षण’ के प्रारंभ होने के बाद बहुत कुछ अच्छा हुआ है| मैंने अपने शैक्षणिक ज्ञान को अधिक बेहतर किया है| ‘संरक्षण’ ने हमेशा प्रत्येक रेडियोलाजिस्ट को प्रेरित किया है कि वे एक अच्छे शैक्षणिक ज्ञान के आधार पर कार्य करते हुए क्लिनिशियन बन सकते हैं| वे कभी नहीं कहते कि आप ग्रामीण क्षेत्र में कार्य करते हैं तो आपको शैक्षणिक ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि दूसरी ओर वे तो प्रेरित करते हैं कि हम जो भी करते हैं उस पर ध्यान दें, डॉक्यूमेंटेशन करें और इसका उपयोग और अधिक सीखने में करें| मैं पेरीनेटल मृत्यु रोक पा रहा हूँ और मरीजों के परिवारों में और बृहद रूप से समाज में फीटल रेडियोलाजिस्ट के प्रति विश्वास पैदा कर पा रहा हूँ|

कई बार मैं सोचता हूँ कि काश ‘संरक्षण’ और पहले प्रारंभ हो जाता, तो मैं कई और जिंदगियां बचा पाता, किन्तु प्रत्येक वस्तु  का एक समय और स्थान होता है| मैं प्रसन्न हूँ कि अब मैं इस यात्रा का एक हिस्सा हूँ| मुझे सबसे अधिक पसंद ये है कि ‘संरक्षण’ टीम ग्रामीण क्षेत्र में प्रैक्टिस करने में और एक अकेले डॉक्टर की प्रैक्टिस में आने वाली समस्यायों को समझ कर, निरंतर सहायता और प्रेरणा प्रदान करती है| उन्होंने मुझे ये दर्शाकर कि महिला और बच्चे के लिए ज्ञान का उपयोग बेहतर कैसे करें, मेरे अन्दर शैक्षणिक ज्ञान अर्जित करने की गहन इच्छा को पुनर्जीवित किया है| हम साझा की जाने वाली प्रत्येक बात से और प्रत्येक कार्य जो हम करते हैं, से सीखते हैं| हम जो भी करते हैं उसकी मासिक रिपोर्ट तैयार करते हैं| वे कोई भी कृत्रिम लक्ष्य निर्धारित नहीं करते बल्कि वे सीधा कहते हैं कि यदि आप निरंतर बेहतर बन रहे हैं क्योंकि आप चाहते हैं तो आप अपने मरीज को अधिक खुश पाएंगे और मरीज के स्वास्थ्य में सुधार पाएंगे| सरल शब्दों में, मुझे गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों से जुडाव के लिए प्रेरित किया जाता है और हम जांच किये जाने वाले बच्चों से अधिक जुडाव महसूस करते हैं| हमारे मरीज और बच्चे संख्या नहीं हैं, वे मानव हैं|

मैंने समाज के सभी लोगों से ‘संरक्षण’ प्रोटोकॉल के बारे में चर्चा करना प्रारंभ कर दिया है ताकि वे स्वयं के और बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी स्वयं ले सकें| परिवर्तन धीमा हो सकता है किन्तु मैं सकारात्मक हूँ कि परिवर्तन जरुर होगा|  

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